About

निशान्त

Bio: स्वयं की टोह लेना बड़ी भीषण ज़िद है। दम भर निचोड़ो तब कहीं जाकर एक बूँद पाते हैं। नाम मेरा अपना नहीं है, लेकिन बुरा भी नहीं है। तो इसी से काम चल रहा है। किसी भी आम 'पिटी बुर्जुआ' भारतीय परिवार की तरह परिवार की बड़ी संतान होने के नाते स्वाभाविक-सा सपना पाला- आईआईटी; खुशकिस्मती से पूरा हुआ। समीकरण वगैरह बेशक़ रुचिकर नहीं लगते थे, अब और नहीं लगते। यूँ भी छंदों के सामने उनका आकर्षण प्रतिकर्षण बदल जाता है। विचारों के ऐसे खुले समुद्र के पास खड़ा होकर कोई अनुशासित होकर गर्म चट्टानों पर कब तक बैठे! बशीर बद्र की यादों के उजालों में निदा फ़ाज़ली के अपने ग़म लेकर कहीं और जाते समय गुलज़ार के यार जुलाहों से मिलना हो गया और भटकते हुए मुक्तिबोध के अँधेरे में जा पहुँचा। मुझे अब भी लगता है कि लिखने की समझ मुझमें नहीं आई है , लेकिन प्रयास जारी है या कह लीजिये कि सनक जारी है।

View complete profile

 

Leave a comment